पटना
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, पटना में कुलपति पद के लिए गठित सर्च कमिटी एक बार फिर विवादों में घिर गई है। राज्यपाल सचिवालय द्वारा गठित इस कमिटी में राज्य सरकार की ओर से नामित सदस्य के तौर पर प्रोफेसर गिरीश कुमार चौधरी को शामिल किया गया है, जो पूर्व में इसी विश्वविद्यालय में प्रति-कुलपति (Pro-Vice Chancellor) के पद पर कार्य कर चुके हैं। इस नियुक्ति को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल, पटना उच्च न्यायालय ने वाद संख्या 166680/2014 में दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से निर्देशित किया है कि कुलपति चयन के लिए गठित सर्च कमिटी में ऐसे प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को शामिल किया जाए जिनका संबंधित विश्वविद्यालय या उसके अधीन किसी भी महाविद्यालय से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध न हो। ऐसे में यह तथ्य कि प्रो. चौधरी पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रति-कुलपति रह चुके हैं, न्यायालय के आदेश की स्पष्ट अवहेलना के रूप में देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों और शैक्षणिक हलकों में यह विषय गंभीर चर्चा का कारण बना हुआ है। सूत्रों के अनुसार, इस सर्च कमिटी को निरस्त कराने के लिए जल्द ही न्यायालय में एक नई याचिका दाखिल की जा सकती है। गौरतलब है कि यह पहला मामला नहीं है जब प्रो. गिरीश कुमार चौधरी की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। वर्ष 2023 में भी, जब आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति चयन के लिए गठित सर्च कमिटी में उन्हें सदस्य के रूप में शामिल किया गया था, तब भी पटना उच्च न्यायालय में वाद संख्या 10988/2022 के तहत उस कमिटी को निरस्त कर दिया गया था। उस फैसले में भी न्यायालय ने पहले दिए गए आदेश (वाद संख्या 166680/2014) का हवाला देते हुए राज्य सरकार की ओर से की गई नामांकन प्रक्रिया को अनुचित ठहराया था।
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सर्च कमिटी के गठन में न्यायालयीय आदेशों की अनदेखी की जा रही है? और अगर ऐसा है, तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है?